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दैत्य बाणासुर की कथा

दैत्य बाणासुर की कथा भारतीय पौराणिक ग्रंथों में अत्यंत प्रसिद्ध है और इसका वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण और अन्य पुराणों में मिलता है। बाणासुर भगवान शिव का परम भक्त और शक्तिशाली असुर था। उसकी कथा भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण के बीच के संबंधों से जुड़ी है।

बाणासुर की उत्पत्ति और तपस्या

बाणासुर, महाबली असुर राजा बलि का पुत्र था। बलि स्वयं भी एक अत्यंत शक्तिशाली असुर था, जिसे भगवान विष्णु ने वामन अवतार के रूप में हराया था। बाणासुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न कर लिया। भगवान शिव ने बाणासुर को हजारों भुजाओं का वरदान दिया, जिससे वह और भी अधिक शक्तिशाली हो गया।

बाणासुर इतना शक्तिशाली हो गया कि उसने देवताओं सहित सभी को हराकर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। उसका अहंकार बढ़ता गया, और उसने यहां तक कि युद्ध के लिए भगवान शिव को चुनौती दे दी। भगवान शिव ने उसे युद्ध में जीत दिलाने का वरदान भी दिया, और उसे अपनी पुत्री उषा के साथ रहने का आशीर्वाद भी दिया।

उषा और अनिरुद्ध की कथा

बाणासुर की पुत्री उषा ने एक रात स्वप्न में एक सुंदर युवक को देखा और उससे प्रेम करने लगी। वह युवक भगवान कृष्ण के पौत्र, प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध थे। उषा ने अपनी सहेली चित्रलेखा की मदद से अनिरुद्ध को अपने महल में बुला लिया और दोनों का प्रेम बढ़ गया।

जब बाणासुर को इसकी जानकारी मिली, तो उसने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया। यह बात भगवान कृष्ण तक पहुंची, और उन्होंने अनिरुद्ध को मुक्त कराने के लिए बाणासुर के राज्य पर आक्रमण किया। इस युद्ध में भगवान शिव भी बाणासुर की ओर से लड़े।

कृष्ण और शिव का युद्ध

यह युद्ध अत्यंत विनाशकारी था, जिसमें भगवान कृष्ण और भगवान शिव के बीच भीषण युद्ध हुआ। अंततः भगवान कृष्ण ने शिवजी को प्रसन्न किया और युद्ध को समाप्त करने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने कृष्ण के अनुरोध को स्वीकार किया, लेकिन बाणासुर ने फिर भी हार नहीं मानी। अंततः भगवान कृष्ण ने बाणासुर की हजारों भुजाओं को काट दिया, जिससे वह शक्तिहीन हो गया।

हालांकि, भगवान शिव के आशीर्वाद और भक्तिपूर्ण प्रेम के कारण, बाणासुर को मारा नहीं गया। भगवान कृष्ण ने उसकी कुछ भुजाओं को छोड़कर उसे जीवनदान दिया और उसे अपनी शेष जीवन भगवान शिव की सेवा में बिताने का आदेश दिया।