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श्रीखंड महादेव
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भगवान शिव का वरदान !
दैत्य भस्मासुर की कथा
दैत्य भस्मासुर की कथा हिंदू पौराणिक कथाओं में अत्यंत रोचक और शिक्षा देने वाली है। यह कथा भगवान शिव, एक असुर भस्मासुर, और भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार से जुड़ी है। भस्मासुर की कथा अहंकार, शक्ति के दुरुपयोग, और भक्ति की वास्तविक परिभाषा को दर्शाती है।
भस्मासुर की तपस्या
भस्मासुर, एक शक्तिशाली असुर था, जो भगवान शिव का भक्त था। उसने भगवान शिव की कठोर तपस्या की ताकि वह अमरत्व या असीम शक्ति का वरदान प्राप्त कर सके। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने के लिए कहा।
भस्मासुर को वरदान
भस्मासुर ने भगवान शिव से वरदान मांगा कि उसे ऐसी शक्ति मिले कि वह जिसके सिर पर अपना हाथ रखेगा, वह तुरंत भस्म (राख) हो जाएगा। भगवान शिव ने भक्ति से प्रसन्न होकर उसे यह वरदान दे दिया, लेकिन भस्मासुर ने वरदान का दुरुपयोग करने का मन बना लिया।
शिवजी को संकट
जैसे ही भस्मासुर को वरदान मिला, वह इसे परखना चाहता था। अहंकार में आकर उसने भगवान शिव के ही सिर पर अपना हाथ रखने का प्रयास किया। इससे भगवान शिव को संकट हो गया और वे अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे। भस्मासुर ने उनका पीछा किया। भगवान शिव पूरे ब्रह्मांड में दौड़ने लगे, लेकिन भस्मासुर ने उनका पीछा नहीं छोड़ा।
भगवान विष्णु का हस्तक्षेप और मोहिनी अवतार
भगवान शिव ने अंततः भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई। भगवान विष्णु ने स्थिति को समझा और एक चालाक योजना बनाई। उन्होंने मोहिनी नाम की अत्यंत सुंदर स्त्री का रूप धारण किया। मोहिनी ने भस्मासुर को अपनी सुंदरता से मोहित कर लिया।
मोहिनी ने भस्मासुर से कहा कि अगर वह उसे प्रभावित करना चाहता है, तो उसे उसके साथ नृत्य करना होगा और जो भी वह मुद्रा बनाएगी, भस्मासुर को भी वही करना होगा। भस्मासुर मोहिनी की बातों में आ गया और उसके साथ नृत्य करने लगा। नृत्य के दौरान मोहिनी ने अपने सिर पर हाथ रखा, और भस्मासुर ने भी वही मुद्रा दोहराई। जैसे ही उसने अपने सिर पर हाथ रखा, वह तुरंत भस्म हो गया।
कथा का संदेश
भस्मासुर की यह कथा यह संदेश देती है कि शक्ति का दुरुपयोग और अहंकार अंततः विनाश की ओर ले जाते हैं। भगवान शिव ने उसे वरदान दिया, लेकिन भस्मासुर ने उस शक्ति का गलत इस्तेमाल करना चाहा, जिससे उसका ही अंत हो गया। यह कथा बताती है कि भक्ति का उद्देश्य केवल वरदान प्राप्त करना नहीं, बल्कि विनम्रता और सद्गुणों का विकास करना है।
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